Wednesday 16 December 2015

जनरल बोगी का सफरनामा...

ज़िंदगी और ‪घुटन‬ को एक साथ महसूसना हो तो उत्तर प्रदेश और बिहार से भारत के महानगरों की ओर आने-जाने वाली ट्रेनों के जनरल डिब्बे में कभी सफर करिए.
ज़िंदगी इसलिए क्योंकि चलती का नाम ही गाड़ी और ज़िंदगी है और घुटन इसलिए क्योंकि ये घिसट-घिसट कर चलना भी कोई ज़िंदगी है.
शायद, अमूल बॉडी वार्मर. 'ठंड में गर्मी का अहसास' प्रचार का आईडिया लेखक को यहीं बैठे-लेटे आया होगा.
ठंड में यहां ठंड नहीं बल्कि, गाड़ी के रुक जाने पर माथे पर पसीना होता है.
किसी भी स्टेशन पर यदि आप इस प्रतीक्षा में हैं कि तीन लोगों के उतरने से थोड़ी राहत होगी, तो ग्यारह लोगों को चढ़ जाने की वजह से मामला गंभीर हो जाता है. आपको ऐसा लगता है जैसे वे सारे लोग आपकी खड़ी होने वाली जगह को लेकर ही हमलावर और प्रतीक्षारत हैं.
जितनी जगह में सामान्य तौर पर आठ से दस लोगों को बैठना चाहिए, उतनी जगह में कोई पचास लोग बैठे-लेटे-लुढ़के और खड़े होते हैं.
टॉयलेट जाने का खयाल तो आप अपने दिल-ओ-दिमाग में न लाएं तो ही बेहतर, और कहीं ये खयाल आपको खुदा-ना-खास्ता आ गया तो फिर वहां बिन पानी का नल आपका बेसब्री से इंतजार कर रहा होता है. पेशाब भी आप वहां बमुश्किल कर सकते हैं.
लोगों की फ्रस्टेशन का शिकार वे दरवाजे, जहां लोग न जाने कहां-कहां से और किनके-किनके नंबर लिख डालते हैं. कई तो इन्हीं दरवाजों पर उनकी फाइन-आर्ट्स का बकायदा शोऑफ भी कर देते हैं, कस्सम से क्या कमाल की कलाकारी होती है. उसे देख कर उबकाई और हंसी दोनों साथ-ही-साथ आती है.
आप चाहे बोगी के किसी हिस्से में बैठे हों, समय-समय पर आपका स्वागत करने के लिए "मानवीय गैस के भभके" तो फिर आसमानी होते हैं.
रोते-बिलखते बच्चे और मुंह खोल कर बेसुध सोती मांएं यहां की हक़ीकत का हिस्सा हैं.
आप कहीं भी बैठिए, कोई जूता या बैग बिना बताए आपकी देह और सिर पर गिर सकता है. आप अधिक सौभाग्यशाली हुए तो कई बार भरी-भराई टिफिन तो कई बार खाली. होने को तो ये भी हो सकता है कि आप झपकी लेने की पुरजोर कोशिश कर रहे हों और पानी की बोतल आप पर झटके से खुल कर गिर पड़े.
बोगी की फर्श पर बेसुध सोए किसी शख़्स का मोबाइल गिर सकता है और उसे सबकी नज़रों से बचा कर उठा ले गया शख़्स किसी की चौकस नज़र में आ गया हो. सुबह होते ही हो-हल्ला और फिर वो कहानियां का सिलसिला कि, "हम ओके कैसे फोन उठावत देखली हs, उ हम्मे कैसे चोर निगाह से कनखी ताकत रहल हs. कैसे उ हमके देखते कांपे लगल हौ, और हम कैसे बड़का-बड़का चोर-चिहाड़ के भी खाली देखिए कि जान जाइला कि ऊ कवन लेवल कs खुराफाती हs, और महादेव हमके कैसे दिव्य नज़र से नवज़ले हउउन.
ये सब कुछ वहां बिना किसी स्क्रिप्ट के घटता है, या फिर होने को तो ये भी हो सकता है कि सारी स्क्रिप्ट किसी ने पहले से ही लिख दी हो.
बहरहाल, तो ये है हम-सभी की मजबूरी और कई बार ज़रूरत जनरल बोगी का हाल. आंखों देखा और सहा गया.
वैसे तो हम यहां के रेगुलर विजिटर हैं, मगर अब यहां भसड़ कुछ ज्यादा ही मचने लगी है. पता नहीं ‪‎बुलेट ट्रेन‬ के सुनहरे सपने किन भारतीयों को लुभाने के लिए हैं.
हम तो अब तक गरीब रथ के अलावा कभी एसी का टिकट कटवा ही नहीं पाए हैं. और सही कहें तो हमरी हैसियत भी नहीं है या फिर कि कई बार सिद्धांत आड़े आ जाता है. हां, मगर एक बार नौकरी छोड़ने से पहले एसी वन टियर में सफर करने की दिली-तमन्ना है. कोई भलामानुष दोस्त चाहे तो टिकट गिफ्ट कर सकता है. हम सहर्ष स्वीकारेंगे. ऊपर से उसको फेसबुक पर टैग करके बधाई देंगे सो अलग.
अथ श्री जनरल बोगी जनरल-स्पेशल कथा.
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